simla samjhauta kya hai ( शिमला समझौता क्या है )
41 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ था. उस वक्त समझौते
से ज़्यादा चर्चा बेनज़ीर की हुई थी, जो अपने पिता के साथ भारत आईं थीं 1971 का भारत-पाक युद्ध के बाद भारत के शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए। इसे शिमला समझौता कहते हैं। इसमें भारत की तरफ से इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो शामिल थे।
यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 93000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे। ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल तक जंग करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परन्तु किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से बेनजीर भुट्टो और भारत की ओर से इन्दिरा गाँधी ने हस्ताक्षर किये थे। यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था। इस समझौते से भारत को पाकिस्तान के सभी 93000 से अधिक युद्धबंदी छोड़ने पड़े और युद्ध में जीती गयी 5600 वर्ग मील जमीन भी लौटानी पड़े
आलोचना :
भारत में शिमला समझौते के आलोचकों ने कहा कि यह समझौता तो एक प्रकार से पाकिस्तान के सामने भारत का समर्पण था क्योंकि भारत की सेनाओं ने पाकिस्तान के जिन प्रदेशों पर अधिकार किया था अब उन्हें छोड़ना पड़ा। परंतु शिमला समझौते का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि दोनों देशों ने अपने विवादों को आपसी बातचीत से निपटाने का निर्णय किया। इसका यह अर्थ हुआ कि कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय रूप न देकर, अन्य विवादों की तरह आपसी बातचीत से सुलझाया जाएगा।
यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 93000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे। ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल तक जंग करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परन्तु किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से बेनजीर भुट्टो और भारत की ओर से इन्दिरा गाँधी ने हस्ताक्षर किये थे। यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था। इस समझौते से भारत को पाकिस्तान के सभी 93000 से अधिक युद्धबंदी छोड़ने पड़े और युद्ध में जीती गयी 5600 वर्ग मील जमीन भी लौटानी पड़े
आलोचना :
भारत में शिमला समझौते के आलोचकों ने कहा कि यह समझौता तो एक प्रकार से पाकिस्तान के सामने भारत का समर्पण था क्योंकि भारत की सेनाओं ने पाकिस्तान के जिन प्रदेशों पर अधिकार किया था अब उन्हें छोड़ना पड़ा। परंतु शिमला समझौते का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि दोनों देशों ने अपने विवादों को आपसी बातचीत से निपटाने का निर्णय किया। इसका यह अर्थ हुआ कि कश्मीर विवाद को अंतरराष्ट्रीय रूप न देकर, अन्य विवादों की तरह आपसी बातचीत से सुलझाया जाएगा।
simla samjhauta kya hai ( शिमला समझौता क्या है )
Reviewed by Pradeep kumar
on
December 05, 2018
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too good
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